[१] कुर्मी का छपरा बड़ेरे पर न जाई , जात जात जाई तौ तिरछे हुयी जाई
अर्थात सामूहिक एकता और सहयोग में कुर्मी बहुत पीछे है | छप्पर आपसी सहयोग और एकजुटता के बिना संभव नहीं है , उसे बनाने और
ऊपर छाने में अनेक व्यक्तियों की आवश्यकता पड़ती है | बिना सहयोग के छपरा बड़ेरे तक नहीं जा सकता है , कुर्मी का छपरा कहावत के अनुसार
बड़ेरे तक जाता ही नहीं है और अगर चला भी जाता है तो सहयोग और एकता की कमी के कारण तिरछा हो जाता है |
[२] कोटि चलें कुर्मी के पीछे , कुर्मी नहीं काहू के पीछे
अर्थात कुर्मी के पीछे चलने वालों की संख्या तो करोड़ों है , पर कुर्मी किसी के पीछे नहीं चलता है | अब आयें निष्कर्ष निकालें क्यों कुर्मी
राजनीति में पिछड़ जाता है ?जब हम किसी के पीछे नहीं चलेंगे तो अर्थ स्पष्ट है की हम किसी को नेता नहीं मानते |फिर जो बमुश्किल नेता बन
कर कार्य करते हैं , उन्हें भी हम समर्थन नहीं देते , इसलिए वे कमजोर हो जाते हैं |हम सब नेता बन जाते हैं | यही गंभीर बीमारी है जो सदियों से खून में बस गयी है |
दो कहावतें हमारी आँखें भी खोलती हैं और दिशा भी दिखाती हैं |
No comments:
Post a Comment