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Monday, 25 July 2011

fece book ke fece [hori khadaa bazar men ]

                                                                                                       फेस बुक के फेस [ होरी खड़ा बज़ार   में ]
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'होरी' को  बहुत  दिनों  बाद  आज  बाज़ार  में  टहलते  हुए   पत्रकार , कवी , लेखक , समीक्षक , संपादक  , यु एस एम् पत्रिका फेम वाले आदरणीय उमासंकर मिश्र  जी मिल गए |हमेशा सीना तान कर चलने   वाले ,सर   आसमान  की   और  रखने  वाले  भाई  मिश्र  जी  आज  फेस  नीचा   किये   हुए  थे |मैनें  पूछ  लिया  आदरणीय  आज  फेस  नीचा  क्यों ? सुनते ही वह बिफर पड़े , फिर बिखरे , बिखरे  करुण रस में  डूबे हुए , भुन भुनाते हुए बोले .....'होरी' जी मैं फेस बुक के चक्कर में पड़ गया | आज हाल यह है कि ३५ वर्षों  की साहित्यिक  साधना गर्त में मिल गयी  | फेस बुक ने मेरा फेस ही बिगड़ दिया , क्या करूँ , नीचे कर के चल रहा हूँ |
                                                                                 मैंने कहा ...पहेलियाँ  न बुझाईये , माजरा क्या है ? बताईये | वह ठंडी  साँसें लेते हुए मुझसे रौद्र रस में बोले ......'होरी' , यार तुम्ही ने इस जाल में फंसा दिया |मै  सीधा  सादा  , कलम , कागज , दवात  के  बल पर साहित्य सर्जन करता था , साहित्यकार   बना  था ,डाक तार  विभाग  अधिक से अधिक  कोरियर  की  सेवाएँ  ले  लेता  था |तुम्ही ने कहा था की इंटरनेट  का युग है ....इमेल खोलो ... फेस बुक में जाओ | मै चला गया | मै भी फेस बुक वाला बन गया , चैटिंग करने लग गया , मेसेज  भेजने  लग गया  |मेरा नाम इन्टरनेट में छा गया | मै  घोड़े  की  तरह  दौड़  ही  रहा  था  कि   किसी  ने  घोड़े  को     टंगड़ी   मारी , घोड़े    ने मुझे     दुलत्ती  मारी ,मैं चारो खाने चित्त |मिश्र जी फेस जमीं में गडाए ,गडाए   बोले ...भाई मेरे विरोधिओं ने फेस बुक में  मेरे बारे  में  न जाने क्या क्या कहा .... पाखंडी , कविता चोर , कहानी चोर , साहित्य चोर , dhan hadpu  आदि आदि विशेषण तो दिए ही  'मां , 'बहन ' तक कर डाली |मैं जवाब देते देते परेशान | जितना जवाब देता उतनी ही मेरे खिलाफ मुहीम तेज | फेस बुक में मेरे खिलाफ लायिक कि बटन ऐसे दबाई   कि मुझे ही नालायक बना दिया |  
                             सब मेरे विरोधियों को लायिक कर रहे थे [ क्रमशः ]

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