[व्यंग्य ] फेसबुक के फेस[भाग ३] {होरी खडा बज़ार में}
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'होरी' को बज़ार में आगे चौराहे के पास कोतवाली से आते हुए कटियार साहब टकरा गए |नयी पीढ़ी के यही कोई ३० वर्ष के रहे होंगे | दो बच्चों के पिता पर फेसबुक के दीवाने |इन्टरनेट के मास्टर| मैं पूछ बैठा 'क्या हाल है ?'
यह बताते चलें कि कटियार नयी पीढ़ी के सोसल नेटवर्किंग के जबरदस्त समर्थक थे | स्पेस्लिस्ट थे | इतने लाभ गिनाते कि सुनने वाले इनके फेसबुक फ्रेंड्स हो जाते| अनेक देशों में फैले इन्तेर्नेतीय दोस्त | यहाँ दोस्ती के लिए मिलना आवश्यक नहीं | बिना मिले दोस्ती |चैटिंग चैटिंग में दोस्ती के गुरु थे कटियार |
आज कुछ , चेहरा लटका हुआ था |फेस की चमक दमक गायब | मेरे प्रश्न का कोई उत्तर नहीं |मुझे मजाक सूझी ...'फेसबुक में कोई नयी इंट्री हुयी क्या , कटियार साहब ?
अब कटियार के अन्दर का घड़ा फूट गया| बोले ...'होरी , आपको फेसबुक की इंट्री की पड़ी है , मेरे जीवन की इंट्री बिगड़ी जा रही है | कोतवाली के फैमिली कौन्सिलिंग सेंटर से आ रहा हूँ |यह मेरी पत्नी है , मुस्किल से मानी है , तलाक से नीचे बात ही नहीं कर रही थी |कहती थी की घर में फेसबुक रहेगी या वह फैसला करलो|
पत्नी को लेकर , फेसबुक को थानें में ही छोड़ कर आ रहा हूँ | फिर मुझे एक किनारे ले जाकर धीरे से कान में बोले ...'होरी जी , बच्चों और पत्नी की नज़रों में मेरा फेस गन्दा हो चुका है | ' मैं भी धीरे से बोला ' आखिर हुआ क्या ?' वह एक ठंडी और लम्बी सांस खींच कर धीरे धीरे बोले...' मेरी फेसबुक की वाल बार , बार कोई गन्दी कर देती थी, वह फेस बुक की वाल को दीवाल समझ कर काला पोत देती | मैं साफ़ करता तब तक फिर पोत देती | इधर मैं व्हाईट करता , उधर वह ब्लैक कर देती | मुझे भी इस रंगाई , पुताई में मज़ा आ रहा था , पर एक दिन मेरे बच्चों ने पकड़ लिया , फिर क्या माँ को बता दिया|
घर में कोहराम मच गया | पत्नी बोली यही तुम्हारा असली फेस है ? तभी हमेशा फेसबुक में गड़े रहते थे | मैं जा रही हूँ , तुम उसी से शादी करलो | मामला फैमिली कोर्ट से बचा है | आज कई महीनों का झगडा थमा है | फेसबुक से भाग कर फेस नीचे किये हुए कटियार साहब मेरे कान में बोले ...अब पत्नी को घर में , फेसबुक को आफिस में |
'होरी' सोच सोच कर परेशान था पत्नी ,परिवार चाहे जाये फेसबुक न जाए | क्या बाला है फेसबुक !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!![क्रमशः]
राज कुमार सचान 'होरी'
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