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Tuesday 19 July 2011

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From: <919984708227@mms1.live.vodafone.in>
Date: 2011/7/19
Subject:
To: kurmikshatriyamahaasangh@gmail.com


कूर्मि क्षत्रिय महासंघ का बस एक ही है सपना,
एकजुट हो चलना सीखे
कर्तव्य समझ कर अपना।  शिवाजी के वंशज तुम
हो सरदार के लाल
इतिहास पुरोधा होकर के  कैसे हुये बेहाल ?

 अगड़े से पिछड़े हो गये
 आपस मेँ लड़-लड़ कर,
 सत्ता,शक्ति से दूर हुये
 निज हित मेँ पड़कर ।
संघे शक्ति कथा को रटता
दो बैलोँ से शेर भी डरता,
क्या वह जीत भी सकता
उनको अलग न करता ।
रास्ता भूले सदियाँ गुजरी
आ अब लौट चलेँ
महासंघ के सागर मेँ
साथ मेँ ड़ुबकी लेँ॥

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