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Wednesday 10 August 2011

FACE BOOK KE FACE( part 4 HAMID BHAYI)[HORI KHADA BAZAR MEN ]

                 {व्यंग्य }              फेस बुक के फेस [भाग ४] [होरी खडा बाज़ार में ]
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'होरी' बाज़ार में खड़े , खड़े  चिंतन कर रहा था , उमाशंकर मिश्र ,हरिपाल सिंह और कटियार के फेस को याद कर फेसबुक और इन्टरनेट की दुनिया का यथार्थ  भोग रहा था  कि तभी उधर से हामिद भाई आते दिखाई  दे गए |
         ख़ुशी हुयी कि उनके होनहार बेटे का हाल ले लूं , कई वर्षों  से  आयी ए एस की तयारी कर रहा था | पढाई में सदा औव्वल | हर बार क्लास में टाप करता रहा | हामिद भाई भी अपने शाहाब्जदे  की पढाई के कायल थे | उनका दावा रहता कि वह ज़रूर आई .ए .एस  बनेगा , कहते थे कि उनके शाहाब्ज़दे ने किताबे  तो  समझो  घोंट कर पी डाली हैं , फिर  आगे  मुझसे  कहा करते  ....
'होरी'जी आप को इन्टरनेट के बारे में कुछ पता नहीं , फिर सांत्वना देते हुए कहते  , कैसे  पता होगा ? हम लोग पुराणी पीढ़ी के जो ठहरे , पिछड़े हुए | आगे प्रकाश डालते जो उनके बेटे से उन्हें मिला था .... सीना फुला कर बताते ..इन्टरनेट में दुनिया का सारा ज्ञान  भरा पड़ा है | उनके शाहाब्ज़ादे आजकल इन्टरनेट से पढाई कर रहे हैं | जाने कितनी ज्ञान कि साईटें हैं  सब को खंगालते हैं , फेसबुक के अपने दोस्तों से डिस्कस करते हैं , मिलजुल कर तयारी करते हैं |इम्पार्टेंट चीजें  डाउनलोड करते हैं |
          फिर छाती  चौड़ी  कर कहते 'होरी' नया जमाना है , नयी पढाई है  | हम लोग ठहरे पुराने ज़माने के लोग | आज बहुत दिनों बाद वही  हामिद भाई  बाज़ार में अचानक मिल गए थे , खिश था कि शुभ समाचार सुनने को मिलेंगे , मिठाई खाने को मिलेगी .....फिर पूछा ... 'शाहाब्ज़ादे , आयी ए ,एस  हुए ? भाई मिठाई कब   खिला   रहे हो ?  वह इतना सुनना  था कि रो पड़े , मेरे कंधे में सर रख कर फफक फफक कर रोये |जब आंसू शांत हुए तब बोले .......
        'होरी' मेरा लड़का बर्बाद हो गया | हीरा जैसे  होनहार  बेटे  को इन्टरनेट खा गया , फेसबुक के जाल में उलझ गया |वह रात रात भर जागता , मैं समझता पढाई कर रहा है, वह चैटिंग करता था , पढाई से चीटिंग  करता था | क्रेडिट कार्डों   से अंधाधुंध अनेक साईटों में रूपये लगा कर अश्लील सामग्री लोड करता , इतना  डाउनलोड किया कि पूरा परिवार डाउनलोड हो गया |   फिर  मुझे खींचते हुए  एक मोहल्ले कि ओर ले चले .. बड बड़ा रहे थे .... बोले चलो उस मोहल्ले में होरी जहां कभी बाप दादा भी नहीं गए थे ... 
                      वह मुझे वेश्याओं के मोहल्ले में ले आये  थे  | दूर  इशारा करते हुए बोले ... वह  जो लड़का खडा है , वही मेरे शाहाब्जदे हैं ...पहले रुपया था पैसा था तब यह कोठे के बादशाह थे , अब दल्ले हैं , दल्ले ...फिर हामिद भाई सुबकने लगे | 
                 {व्यंग्य }              फेस बुक के फेस [भाग ४] [होरी खडा बाज़ार में ]
             मुझसे नाराज़ होते बोले 'होरी' तुम ऐसे ही बाज़ार में खड़े  रहना , घर के घर तबाह हो रहे हैं , वहाँ जाओ | अब मैं उनके साथ  घरों कि ओर चल पडा था ......"'होरी' आँगन में खडा लिखने "  [क्रमशः]
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'होरी' बाज़ार में खड़े , खड़े  चिंतन कर रहा था , उमाशंकर मिश्र ,हरिपाल सिंह और कटियार के फेस को याद कर फेसबुक और इन्टरनेट की दुनिया का यथार्थ  भोग रहा था  कि तभी उधर से हामिद भाई आते दिखाई  दे गए |
         ख़ुशी हुयी कि उनके होनहार बेटे का हाल ले लूं , कई वर्षों  से  आयी ए एस की तयारी कर रहा था | पढाई में सदा औव्वल | हर बार क्लास में टाप करता रहा | हामिद भाई भी अपने शाहाब्जदे  की पढाई के कायल थे | उनका दावा रहता कि वह ज़रूर आई .ए .एस  बनेगा , कहते थे कि उनके शाहाब्ज़दे ने किताबे  तो  समझो  घोंट कर पी डाली हैं , फिर  आगे  मुझसे  कहा करते  ....
'होरी'जी आप को इन्टरनेट के बारे में कुछ पता नहीं , फिर सांत्वना देते हुए कहते  , कैसे  पता होगा ? हम लोग पुराणी पीढ़ी के जो ठहरे , पिछड़े हुए | आगे प्रकाश डालते जो उनके बेटे से उन्हें मिला था .... सीना फुला कर बताते ..इन्टरनेट में दुनिया का सारा ज्ञान  भरा पड़ा है | उनके शाहाब्ज़ादे आजकल इन्टरनेट से पढाई कर रहे हैं | जाने कितनी ज्ञान कि साईटें हैं  सब को खंगालते हैं , फेसबुक के अपने दोस्तों से डिस्कस करते हैं , मिलजुल कर तयारी करते हैं |इम्पार्टेंट चीजें  डाउनलोड करते हैं |
          फिर छाती  चौड़ी  कर कहते 'होरी' नया जमाना है , नयी पढाई है  | हम लोग ठहरे पुराने ज़माने के लोग | आज बहुत दिनों बाद वही  हामिद भाई  बाज़ार में अचानक मिल गए थे , खिश था कि शुभ समाचार सुनने को मिलेंगे , मिठाई खाने को मिलेगी .....फिर पूछा ... 'शाहाब्ज़ादे , आयी ए ,एस  हुए ? भाई मिठाई कब   खिला   रहे हो ?  वह इतना सुनना  था कि रो पड़े , मेरे कंधे में सर रख कर फफक फफक कर रोये |जब आंसू शांत हुए तब बोले .......
        'होरी' मेरा लड़का बर्बाद हो गया | हीरा जैसे  होनहार  बेटे  को इन्टरनेट खा गया , फेसबुक के जाल में उलझ गया |वह रात रात भर जागता , मैं समझता पढाई कर रहा है, वह चैटिंग करता था , पढाई से चीटिंग  करता था | क्रेडिट कार्डों   से अंधाधुंध अनेक साईटों में रूपये लगा कर अश्लील सामग्री लोड करता , इतना  डाउनलोड किया कि पूरा परिवार डाउनलोड हो गया |   फिर  मुझे खींचते हुए  एक मोहल्ले कि ओर ले चले .. बड बड़ा रहे थे .... बोले चलो उस मोहल्ले में होरी जहां कभी बाप दादा भी नहीं गए थे ... 
                      वह मुझे वेश्याओं के मोहल्ले में ले आये  थे  | दूर  इशारा करते हुए बोले ... वह  जो लड़का खडा है , वही मेरे शाहाब्जदे हैं ...पहले रुपया था पैसा था तब यह कोठे के बादशाह थे , अब दल्ले हैं , दल्ले ...फिर हामिद भाई सुबकने लगे | 
                 {व्यंग्य }              फेस बुक के फेस [भाग ४] [होरी खडा बाज़ार में ]
             मुझसे नाराज़ होते बोले 'होरी' तुम ऐसे ही बाज़ार में खड़े  रहना , घर के घर तबाह हो रहे हैं , वहाँ जाओ | अब मैं उनके साथ  घरों कि ओर चल पडा था ......"'होरी' आँगन में खडा लिखने "  [क्रमशः]
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'होरी' बाज़ार में खड़े , खड़े  चिंतन कर रहा था , उमाशंकर मिश्र ,हरिपाल सिंह और कटियार के फेस को याद कर फेसबुक और इन्टरनेट की दुनिया का यथार्थ  भोग रहा था  कि तभी उधर से हामिद भाई आते दिखाई  दे गए |
         ख़ुशी हुयी कि उनके होनहार बेटे का हाल ले लूं , कई वर्षों  से  आयी ए एस की तयारी कर रहा था | पढाई में सदा औव्वल | हर बार क्लास में टाप करता रहा | हामिद भाई भी अपने शाहाब्जदे  की पढाई के कायल थे | उनका दावा रहता कि वह ज़रूर आई .ए .एस  बनेगा , कहते थे कि उनके शाहाब्ज़दे ने किताबे  तो  समझो  घोंट कर पी डाली हैं , फिर  आगे  मुझसे  कहा करते  ....
'होरी'जी आप को इन्टरनेट के बारे में कुछ पता नहीं , फिर सांत्वना देते हुए कहते  , कैसे  पता होगा ? हम लोग पुराणी पीढ़ी के जो ठहरे , पिछड़े हुए | आगे प्रकाश डालते जो उनके बेटे से उन्हें मिला था .... सीना फुला कर बताते ..इन्टरनेट में दुनिया का सारा ज्ञान  भरा पड़ा है | उनके शाहाब्ज़ादे आजकल इन्टरनेट से पढाई कर रहे हैं | जाने कितनी ज्ञान कि साईटें हैं  सब को खंगालते हैं , फेसबुक के अपने दोस्तों से डिस्कस करते हैं , मिलजुल कर तयारी करते हैं |इम्पार्टेंट चीजें  डाउनलोड करते हैं |
          फिर छाती  चौड़ी  कर कहते 'होरी' नया जमाना है , नयी पढाई है  | हम लोग ठहरे पुराने ज़माने के लोग | आज बहुत दिनों बाद वही  हामिद भाई  बाज़ार में अचानक मिल गए थे , खिश था कि शुभ समाचार सुनने को मिलेंगे , मिठाई खाने को मिलेगी .....फिर पूछा ... 'शाहाब्ज़ादे , आयी ए ,एस  हुए ? भाई मिठाई कब   खिला   रहे हो ?  वह इतना सुनना  था कि रो पड़े , मेरे कंधे में सर रख कर फफक फफक कर रोये |जब आंसू शांत हुए तब बोले .......
        'होरी' मेरा लड़का बर्बाद हो गया | हीरा जैसे  होनहार  बेटे  को इन्टरनेट खा गया , फेसबुक के जाल में उलझ गया |वह रात रात भर जागता , मैं समझता पढाई कर रहा है, वह चैटिंग करता था , पढाई से चीटिंग  करता था | क्रेडिट कार्डों   से अंधाधुंध अनेक साईटों में रूपये लगा कर अश्लील सामग्री लोड करता , इतना  डाउनलोड किया कि पूरा परिवार डाउनलोड हो गया |   फिर  मुझे खींचते हुए  एक मोहल्ले कि ओर ले चले .. बड बड़ा रहे थे .... बोले चलो उस मोहल्ले में होरी जहां कभी बाप दादा भी नहीं गए थे ... 
                      वह मुझे वेश्याओं के मोहल्ले में ले आये  थे  | दूर  इशारा करते हुए बोले ... वह  जो लड़का खडा है , वही मेरे शाहाब्जदे हैं ...पहले रुपया था पैसा था तब यह कोठे के बादशाह थे , अब दल्ले हैं , दल्ले ...फिर हामिद भाई सुबकने लगे | 
             मुझसे नाराज़ होते बोले 'होरी' तुम ऐसे ही बाज़ार में खड़े  रहना , घर के घर तबाह हो रहे हैं , वहाँ जाओ | अब मैं उनके साथ  घरों कि ओर चल पडा था ......"'होरी' आँगन में खडा लिखने "  [क्रमशः]

1 comment:

Anonymous said...

YEH EK SOOKSHM SI KAVITA ABHI HUMNE (Ankur Sachan)SOCHTE SOCHTE LIKHI HAI ADDHE GHANTE MEIN....KABHI NAHI LIKHI PAR IS BLOG MEIN JAB HAMNE WOH PARAGRAPH READ KIYA TABHI HAMAARE BHI DIMAG MEIN AAYA KI KYU NA ISKI SHURUAAT KI JAAYE...KRIPAYA HAME AVASHYA BATAAIYEGA KI YEH KAVITA MERE SAATHIYON KO KAISI LAGI...
JO HUMNE ZINDGI MEIN PAIDA HOTE HE DEKHA SUNA ...USKA BAYAAN HAI ISME....DHANYAVAAD AAPKA...!

"Paida hua toh Hahakaar (1984 - dange),aur badha to shrishtachaar, aur badha to milansaar,

Phir hue hain durvyavhar jab hum padha karte thhe yaar,
phir chale apne anusaar,chhod diya sara shrishtachar,

Kabhi padi Pita se, to kabhi padi Maata se maar,
phir pade thhode beemaar, socha ab toh aar ya paar,tabhi banaaye dost chaar, kee mahavidhyalay mein maaramaar,

Padha ek din GEETA ka saar, aur chhaan liya sara sansaar,
phir dheere dheere jaana humne ,saare DESH mein hai BHRASHTACHAAR,

Kahan gaya GEETA ka saar....kahaan gaye hum jo thhe chaar, aakh uthhai aur tab dekha ki ho rahe hain ek doosre par vaar,...

Phir raat hui aur tab socha ki kaise hatau bhrashtachar?...kaise hataau bhrashtachar?...

Ab smaran hota hai saara shrishtachaar, woh maa baap ki maar, ....magar phir nikla hu karne is Desh ka Uddhaar aur nahi maanunga ab maein HAAR....kyonki laana hai woh shrishtachar,.....
MITAANA HAI IS DESH SE BHRASHTACHHAR!!!!! "

"Duvidhaaon ko hataana hai....KURMI SAMAAJ ko aage badhaana hai...."
(JAI PATEL!!!!) - ANKUR SACHAN