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Monday 25 May 2015

Kisaan aur Gareeb

किसान और ग़रीब 
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68 वर्षों की स्वतंत्रता के बाद भी किसान ग़रीब शब्द का पर्याय क्यों बना रहा ?? कृषि घाटे का व्यवसाय हमेशा से ही रहा है इस लिये । किसी व्यवसायी को किसी धन्धे में लगातार घाटा होता रहे फिर भी वह पीढ़ी दर पीढ़ी उसी में चिपटा रहे यही तो किसान है ! अन्नदाता और जय किसान के भ्रम में जीना और मरना ही उसकी नियति रही है । 
उत्तम खेती कभी नहीं थी ,और न उत्तम कभी किसान ।
जय किसान कह ठगा गया बस ,होरी बोले सदा सचान ।।
         उसके समीप गाँवों में रोज़गार सृजन करें , कृषि के ७० प्रतिशत भार को कम करें ।कृषि के लागत मूल्यों को कम करें ,सीधे सब्सिडी देकर ।
                                      राज कुमार सचान होरी 
                         राष्ट्रीय अध्यक्ष ---बदलता भारत

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