धूर्तों को समर्पित मेरे दोहे-------
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उत्तम खेती थी नहीं , उत्तम नहीं किसान ।
होरी बस होरी रहा , रहे सदा मुख प्रान ।।
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निषिध चाकरी है कहाँ ,सेवक का है राज ।
बान, वणिक हैं उच्चतम , होरी देख समाज ।।
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भिक्षाटन इस देश में , पाता आदर मान ।
मूर्ख बनाने हेतु बस ,मिलता रहा किसान ।।
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राज कुमार सचान होरी
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