किसान -अन्नदाता
॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰
किसान की होती है भूमि , जिस पर वह खेती करता है और ठीक वैसे ही भूमि का होत है किसान जो भूमि के लिये होता है ,भूमि के द्वारा होता है । उसका सम्पूर्ण अस्तित्व भूमि के लिये होता है । भूमि और किसान अन्योन्याश्रित हैं दोनो एक दूसरे पर निर्भर , एक दूसरे से ज़िन्दा ।किसान से भूमि छीन लो किसान मर जायेगा , भूमि से किसान छीन लो भूमि मर जायेगी -- एकदम बंजर ।किसान और भूमि का यह सदियों पुराना संबद्ध चलता आया है ।
इस मधुर संबंध में जब तब पलीता लगाया है किसी ने तो वे हैं भूमाफिया और भगवान । भूमाफ़ियाओं में सबसे ऊँचा बड़ा स्थान सरकारों का होता है , हाँ ग़ैरसरकारी भूमाफिया भी होते हैं जो संख्या में अधिक हैं और वे ही कभी सरकारों से मिल कर तो कभी अकेले दम पर ही भूमि को हथियाते हैं , कब्जियाते हैं । उधर भगवान के तो कहने ही क्या -कभी जल मग्न कर भूमि कब्जियाई तो कभी सुखा सुखा कर भूमि और किसान की दुर्गति करदी । कभी गोले की तरह ओले बरसा दिये तो कभी कोरें का बाण चला दिया । बस भगवान की मर्ज़ी ।कभी कभी तो एक साथ इतने सारे अस्त्र शस्त्र चला देता है भगवान कि किसान और भूमि दोनो को इतना घायल कर देता है कि किसान और भूमि दोनो गले लग लग कर मरते हैं ।
अन्नदाता -- एक अन्य नाम है ।किसान का कथित सम्मान बढ़ाने वाला नाम । जैसे प्राणदाता , दानदाता या जीवनदाता ।
No comments:
Post a Comment