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Monday, 25 May 2015

Annadaataa part 2

किसान - अन्नदाता 
(भाग -२)  
भूमि से अन्न पैदा करना और उसे दानदाता की भाँति दूसरों को दे देना ,वाह रे अन्नदाता !! वाह रे धरती के विधाता ? शोषकों के शोषण से आकंठ त्रस्त पर भ्रम में मस्त कि वह " अन्नदाता " है । अन्नव्यवसाई या अन्न विक्रेता नाम हमने इसलिये नहीं दिये कि वह हानि लाभ की सोचे ही नहीं बस बना रहे अन्नदाता । लाभ हानि का गणित किसान को समझ में नहीं आना चाहिये ।जैसे ही समझ में आयेगा या तो वह खेती छोड़ देगा या खेती में ही मर खप जायेगा ।
                     अन्न व्यवसायी , अन्न विक्रेता , अन्न उत्पादक जैसे नामकरण शहरी धूर्तों , नेताओं और पाखण्डी लेखकों ,कवियों ने उसे दिये ही नहीं ।उसे तो अन्नदानी की श्रेणी में रख कर इन सबने सदियों से ठगा ही । तभी धूर्तो की प्रशंसा से ख़ुश होकर वह अधिक लागत लगा , अपना ख़ून पसीना लगा अपना अन्न , दाता के रूप में देता रहा । दान भाव से देता रहा अपना अन्न लहू से पैदा हुआ । वाह रे अन्नदानी !! किये रहो खेती , भूखों मरते रहो ,ग़रीबी में ही जियो ,मरो । जब सब्र टूट जाय कर लो आत्म हत्या किसी को क्या लेना देना , शहरी धूर्त यही कहेंगे कि पारिवारिक कलह से मरा ,बीमारी से मरा ।  सैनिक के मरने पर तो देश गमगीन भी होता है , सम्मान में क़सीदे भी पढ़ता है पर तेरे मरने पर जय किसान भी कोई नहीं कहता । कुछ समझे महामहिम अन्नदाता जी ?? 
                कोई भी व्यवसायी घाटे में व्यवसाय अधिक समय तक नहीं कर सकता , किसान कर सकता है मरते दम तक । शहरी को खेती करते देखा है ? नहीं न ? है कोई माँ का लाल जो किसान की तरह काम करे ~ लागत अधिक लगाये , लगातार घाटा उठाये पर करे खेती ही । जीना यहाँ , मरना यहाँ की नियति में ।
                 सरकारें और शहरी धूर्त ,नेता ,व्यवसायी ,सब के सब लगे रहते हैं कि १-अनाज के दाम न बढ़ें और २- किसान खेती न छोड़े ,गाँव न छोड़े । नहीं तो भारी अनर्थ हो जायेगा । कहाँ मिल पायेंगे देश को ये 90 करोड़ बंधुआ किसान । चिन्ता उसके मरने से अधिक हमारे मरने  की है , हम तो बंधुआ मज़दूर और बंधुआ किसान के पैरोकार  जो ठहरे ।पढ़े लिखों के तर्क सुनिये किसान अनाज नहीं पैदा करेगा तो हम खायेंगे क्या ? देश क्या खायेगा ? जैसे पेट काट कर खिलाने का ठेका किसानों ने ले लिया है । स्वयं भूखों मर कर हम परजीवियों को ज़िन्दा रखने का पुण्य काम उसी के लिये है । हम तुम्हारी फ़सलो के दाम नहीं बढ़ायेंगे तुम मर जाओ ठीक पर देश नहीं मरना चाहिये । २०% को ज़िन्दा रखने के लिये ८० % की क़ुर्बानी । 
                    ( क्रमश: )

Annadaataa

                   किसान -अन्नदाता 
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          किसान की होती है भूमि , जिस पर वह खेती करता है और ठीक वैसे ही भूमि का होत है किसान जो भूमि के लिये होता है ,भूमि के द्वारा होता है । उसका सम्पूर्ण अस्तित्व भूमि के लिये होता है । भूमि और किसान अन्योन्याश्रित हैं दोनो एक दूसरे पर निर्भर , एक दूसरे से ज़िन्दा ।किसान से भूमि छीन लो किसान मर जायेगा , भूमि से किसान छीन लो भूमि मर जायेगी -- एकदम बंजर ।किसान और भूमि का यह सदियों पुराना संबद्ध चलता आया है ।
                         इस मधुर संबंध में जब तब पलीता लगाया है किसी ने तो वे हैं भूमाफिया और भगवान । भूमाफ़ियाओं में सबसे ऊँचा बड़ा स्थान सरकारों का होता है , हाँ ग़ैरसरकारी भूमाफिया भी होते हैं जो संख्या में अधिक हैं और वे ही कभी सरकारों से मिल कर तो कभी अकेले दम पर ही भूमि को हथियाते हैं , कब्जियाते हैं । उधर भगवान के तो कहने ही क्या  -कभी जल मग्न कर भूमि कब्जियाई तो कभी सुखा सुखा कर भूमि और किसान की दुर्गति करदी । कभी गोले की तरह ओले बरसा दिये तो कभी कोरें का बाण चला दिया । बस भगवान की मर्ज़ी ।कभी कभी तो एक साथ इतने सारे अस्त्र शस्त्र चला देता है भगवान कि किसान और भूमि दोनो को इतना घायल कर देता है कि किसान और भूमि दोनो गले लग लग कर मरते हैं ।
                              अन्नदाता -- एक अन्य नाम है ।किसान का कथित सम्मान बढ़ाने वाला नाम । जैसे प्राणदाता , दानदाता  या जीवनदाता ।  

Kisaan aur Gareeb

किसान और ग़रीब 
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68 वर्षों की स्वतंत्रता के बाद भी किसान ग़रीब शब्द का पर्याय क्यों बना रहा ?? कृषि घाटे का व्यवसाय हमेशा से ही रहा है इस लिये । किसी व्यवसायी को किसी धन्धे में लगातार घाटा होता रहे फिर भी वह पीढ़ी दर पीढ़ी उसी में चिपटा रहे यही तो किसान है ! अन्नदाता और जय किसान के भ्रम में जीना और मरना ही उसकी नियति रही है । 
उत्तम खेती कभी नहीं थी ,और न उत्तम कभी किसान ।
जय किसान कह ठगा गया बस ,होरी बोले सदा सचान ।।
         उसके समीप गाँवों में रोज़गार सृजन करें , कृषि के ७० प्रतिशत भार को कम करें ।कृषि के लागत मूल्यों को कम करें ,सीधे सब्सिडी देकर ।
                                      राज कुमार सचान होरी 
                         राष्ट्रीय अध्यक्ष ---बदलता भारत

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Friday, 15 May 2015

सरकारी अवकाशों की राजनीतिरा

उ प्र की सरकार न जाने कितनों पर मेहरबान है और आयेदिन तुष्टीकरण के लिये अवकाश घोषित करती है , पर न जाने क्यों उसे सरदार पटेल से क्यों एलर्जी है ? यह तो सपा के कुर्मी नेता ही जाने , समाज तो देख रहा है , समय पर जवाब भी देगा ।
                            राजकुमार सचान होरी 
                      राष्ट्रीय अध्यक्ष --- बदलता भारत

धूर्तों को समर्पित दोहे

               धूर्तों को समर्पित मेरे दोहे-------

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उत्तम खेती थी नहीं , उत्तम नहीं किसान ।
 होरी बस होरी रहा , रहे सदा मुख प्रान ।।
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निषिध चाकरी है कहाँ ,सेवक का है राज ।
बान, वणिक हैं उच्चतम , होरी देख समाज ।।
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भिक्षाटन इस देश में , पाता आदर मान ।
मूर्ख बनाने हेतु बस ,मिलता रहा किसान ।।
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                 राज कुमार सचान होरी 

Thursday, 14 May 2015

सूटबूट

सूट   बूट में ही   रहे बाप , बाप के बाप ।
"होरी"उनको चोर क्या ?कहते हैं अब आप ।।