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Friday, 5 February 2016

HORI KAHIN

          होरी कहिन
००००००००००००००००
१--
आज स्वतंत्रता व्यक्ति की , सिर पर हुई सवार ।
है  कमज़ोर  समाज  अब ,छिन्नभिन्न   परिवार ।।
छिन्न  भिन्न  परिवार , व्यर्थ  अब  नैतिकता  है ।
संस्कार   से  हीन   ,बढ़ी  अब   भौतिकता  है ।।
फिर से  जंगल  वाला दर्शन ,बना कोढ़ में खाज़ ।
होरी   जो जितना   नंगा है  ,वही  सभ्य है आज ।।
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२--
हिन्दू   अपमानित   करें ,और   बढ़ायें   अन्य ।
राष्ट्रवाद  के हेतु   तो , यह   है पाप   जघन्य ।।
यह  है  पाप  जघन्य  ,न करिये  भेद  कभी भी ।
रखिये इन्हें  समान  ,तुला  पर समय  अभी  भी ।।
तुष्टीकरण    किसी   का  भी,  हो  ठीक   नहीं ।
होरी   कहिये   वही   सदा , जो   पूर्ण    सही ।।
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राजकुमार सचान होरी
www.horionline.blogspot.com
अध्यक्ष -- बदलता भारत 

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