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Sunday, 28 February 2016

किसान - अन्नदाता-२

किसान - अन्नदाता
(भाग -२)
भूमि से अन्न पैदा करना और उसे दानदाता की भाँति दूसरों को दे देना ,वाह रे अन्नदाता !! वाह रे धरती के विधाता ? शोषकों के शोषण से आकंठ त्रस्त पर भ्रम में मस्त कि वह " अन्नदाता " है । अन्नव्यवसाई या अन्न विक्रेता नाम हमने इसलिये नहीं दिये कि वह हानि लाभ की सोचे ही नहीं बस बना रहे अन्नदाता । लाभ हानि का गणित किसान को समझ में नहीं आना चाहिये ।जैसे ही समझ में आयेगा या तो वह खेती छोड़ देगा या खेती में ही मर खप जायेगा ।
अन्न व्यवसायी , अन्न विक्रेता , अन्न उत्पादक जैसे नामकरण शहरी धूर्तों , नेताओं और पाखण्डी लेखकों ,कवियों ने उसे दिये ही नहीं ।उसे तो अन्नदानी की श्रेणी में रख कर इन सबने सदियों से ठगा ही । तभी धूर्तो की प्रशंसा से ख़ुश होकर वह अधिक लागत लगा , अपना ख़ून पसीना लगा अपना अन्न , दाता के रूप में देता रहा । दान भाव से देता रहा अपना अन्न लहू से पैदा हुआ । वाह रे अन्नदानी !! किये रहो खेती , भूखों मरते रहो ,ग़रीबी में ही जियो ,मरो । जब सब्र टूट जाय कर लो आत्म हत्या किसी को क्या लेना देना , शहरी धूर्त यही कहेंगे कि पारिवारिक कलह से मरा ,बीमारी से मरा । सैनिक के मरने पर तो देश गमगीन भी होता है , सम्मान में क़सीदे भी पढ़ता है पर तेरे मरने पर जय किसान भी कोई नहीं कहता । कुछ समझे महामहिम अन्नदाता जी ??
कोई भी व्यवसायी घाटे में व्यवसाय अधिक समय तक नहीं कर सकता , किसान कर सकता है मरते दम तक । शहरी को खेती करते देखा है ? नहीं न ? है कोई माँ का लाल जो किसान की तरह काम करे ~ लागत अधिक लगाये , लगातार घाटा उठाये पर करे खेती ही । जीना यहाँ , मरना यहाँ की नियति में ।
सरकारें और शहरी धूर्त ,नेता ,व्यवसायी ,सब के सब लगे रहते हैं कि १-अनाज के दाम न बढ़ें और २- किसान खेती न छोड़े ,गाँव न छोड़े । नहीं तो भारी अनर्थ हो जायेगा । कहाँ मिल पायेंगे देश को ये 90 करोड़ बंधुआ किसान । चिन्ता उसके मरने से अधिक हमारे मरने की है , हम तो बंधुआ मज़दूर और बंधुआ किसान के पैरोकार जो ठहरे ।पढ़े लिखों के तर्क सुनिये किसान अनाज नहीं पैदा करेगा तो हम खायेंगे क्या ? देश क्या खायेगा ? जैसे पेट काट कर खिलाने का ठेका किसानों ने ले लिया है । स्वयं भूखों मर कर हम परजीवियों को ज़िन्दा रखने का पुण्य काम उसी के लिये है । हम तुम्हारी फ़सलो के दाम नहीं बढ़ायेंगे तुम मर जाओ ठीक पर देश नहीं मरना चाहिये । २०% को ज़िन्दा रखने के लिये ८० % की क़ुर्बानी ।
( क्रमश: )
राजकुमार सचान होरी
www.horiindiafarmers.blogspot.com
www.horiindianfarmers.blogspot.com
www.indianfarmingtragedy.blogspot.com
www.jaykisaan.blogspot.com


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Wednesday, 10 February 2016

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Friday, 5 February 2016

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HORI KAHIN

          होरी कहिन
००००००००००००००००
१--
आज स्वतंत्रता व्यक्ति की , सिर पर हुई सवार ।
है  कमज़ोर  समाज  अब ,छिन्नभिन्न   परिवार ।।
छिन्न  भिन्न  परिवार , व्यर्थ  अब  नैतिकता  है ।
संस्कार   से  हीन   ,बढ़ी  अब   भौतिकता  है ।।
फिर से  जंगल  वाला दर्शन ,बना कोढ़ में खाज़ ।
होरी   जो जितना   नंगा है  ,वही  सभ्य है आज ।।
००००००००००००००००००००००००००००००००००
२--
हिन्दू   अपमानित   करें ,और   बढ़ायें   अन्य ।
राष्ट्रवाद  के हेतु   तो , यह   है पाप   जघन्य ।।
यह  है  पाप  जघन्य  ,न करिये  भेद  कभी भी ।
रखिये इन्हें  समान  ,तुला  पर समय  अभी  भी ।।
तुष्टीकरण    किसी   का  भी,  हो  ठीक   नहीं ।
होरी   कहिये   वही   सदा , जो   पूर्ण    सही ।।
००००००००००००००००००००००००००००००००००००
राजकुमार सचान होरी
www.horionline.blogspot.com
अध्यक्ष -- बदलता भारत 

Thursday, 4 February 2016

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