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Sunday, 15 June 2014

Father's Day

फादर्स डे या कोई भी डे मनाइये  आशय यही कि कम से कम एक दिन तो स्मरण करिये ,परन्तु माँ और पिता तो एक दिनी स्मरण के खिलौने नहीं । आपके इस दुनियाँ में आने के पूर्व से ही आपके जीवन में उनका योगदान आरम्भ हो जाता है जो उनके स्वर्गवासी होने के बाद तक भी रहता है प्रेरणा और आदर्श के रूप में ।
         भारतीय संस्कृति में तीन ऋण बताये गये हैं जो प्रत्येक व्यक्ति पर रहते हैं ़़़ ---उनमें से एक है पितृ ऋण जो संस्कृत में माँ और पिता दोनों के लिये एक साथ प्रयुक्त होता है । यह पाश्चात्य संस्कृति ही है जो माँ और पिता को प्रथक करना सिखाती है , दोनों के अलग अलग दिन ----फादर्स डे और मदर्स डे ।
हमारे यहाँ प्रत्येक दिन माता ,पिता के चरण छूने का उल्लेख है , आशीर्वाद लेने का कथन है । एक बार देवताओं में बहस हुई कि किसी भी अनुष्ठान के पूर्व किस देवता की पूजा की जाय ? मंगल कार्य आरम्भ करने के पूर्व किसकी वन्दना की जाय ?  तय हुआ कि जो सम्पूर्ण ब्रह्मांड की पहले परिक्रमा करके निर्धारित स्थान पर आ जाय वही देवता प्रथम आराध्य होगा । सब देवता दौड़ पड़े अपने अपने वाहनों में । गणेश जी का वाहन मूषक ( चूहा) था , उन्होंने वहीं विराजमान अपने माता पिता शंकर पार्वती की परिक्रमा की और बैठ गये । जब सभी देवता ब्रह्माँड की परिक्रमा कर लौटे तो देखा गणेश वहीं हैं । सब ख़ुश थे सोच रहे थे गणेश तो हार कर बैठे हैं ।
         निर्णय हुआ कि गणेश प्रथम आराध्य होंगे ,उन्हीं की वन्दना से सभी कार्य आरम्भ होंगे क्योंकि जो माता पिता की परिक्रमा करता है वही श्रेष्ठ है ।
      यह एक कथानक है पर है एक संदेश ,हर युग के लिये । 
मैंने अपने ढंग से पिता को स्मृति में रखने के लिये , पितृ ऋण चुकाने के लिये अपना उप नाम ( तकल्लुस) पिता के नाम से लिया "होरी"  --उनका नाम था --- श्री होरी लाल । जो आज नहीं हैं पर उनका नाम है । मुझे जानने वाले ८०%" होरी" नाम से ही जानते हैं  ।
मेरे विचार से यही है फादर्स डे मनाने का सच्चा तरीक़ा ,मदर्स डे मनाने का तरीक़ा ।

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