एक दोहा सिर्फ़ आपके लिये ००००००००००
माना तुमने पा लिया , निज कर से आकाश ।
लेकिन पा न सके उन्हें ,जो बैठे थे पास ।।
०००००००००००००००००००००००००००००००००
राज कुमार सचान होरी
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